⚠️ ह़लाल और ह़राम की परवाह नहीं करना ⚠️
हमारे मुआ़शरे में, जो गुनाह बहुत ज़ियादा आ़म हैं उन में एक गुनाह है: रिज़्क़ की फ़िक्र न करना के वो ह़राम है या ह़लाल है; लोगों को बस माल चाहिए चाहे ह़लाल हो या ह़राम। ये वही दौर है जिसके बारे में ह़दीसे पाक में इरशाद हुआ। चुनान्चे, ह़ज़रते अबु हुरैरा रद़ियल्लाहु तआ़ला अ़न्हु से मरवी है: दोनों जहां के मालिक, ह़ुज़ूरे अक़्दस (ﷺ 💚) इरशाद फ़रमाते हैं: "लोगों पर एक ज़माना ऐसा आएगा, कि आदमी परवाह भी न करेगा के इस चीज़ को कहां से ह़ासिल किया है, ह़लाल से या ह़राम से।" इस फ़रमाने पाक को पढ़ें और देखें: क्या ये वही दौर नहीं? ये ह़दीस शैत़ान की औलाद का भी रद्द करती है जो, नबी (ﷺ) के इ़ल्मे ग़ैब को नहीं मानती।
📚 (बहारे शरीअ़त ह़िस्सा 11, सफ़ह़ा 610)
ह़राम माल कमाते हैं, फिर रोना रोते हैं कि बरकत नहीं होती, ज़िन्दगी में सुकून नहीं मिलता, इ़बादत में लुत़्फ़ नहीं आता, हमारी दुआ़ क़ुबूल नहीं होती है। अफ़सोस सद अफ़सोस! काश रोना रोने से पहले अपने आ'माल पर भी ग़ौर किया होता। वो कैसे सुकून पाएगा जिसके अंदर ह़राम दौड़ता हो? उस की दुआ़ कैसे क़ुबूल होगी जिस का खाना, पीना, पहनना सब ह़राम का हो? हम ने लोगों को समझाने की कोशिश की, तो उनकी त़रफ़ से ऐ'तराज़ आए के जो ह़लाल कमाएगा उसके हाथ में कटोरा आ जाएगा। जबकि ये लोग ख़ुद ही कटोरे वाले भिकारी की त़रह़ हैं; जैसे वो ह़राम खाता है, ऐसे ही ये खाते हैं। मस्जिद के इमाम की तनख़्वाह, काफी जगह 3-7 हज़ार है, उसे देखा कहीं मांगते हुए?
बिल्फ़र्ज़ आप 5 हज़ार कमाते हैं और जाइज़ कमाते हैं तो कमाते रहें उसी में अल्लाह बरकत देगा कम कमाएं मगर जाइज़ कमाएं। ये दुनिया कोई चीज़ नहीं, है कोई चीज़ तो फ़क़त आख़िरत। कुछ वक़्त पहले एक शख्स ने मुझे 3 लाख माहाना देने को बोला था मगर मैंने उस पर कोई तवज्जो नहीं दी, क्योंकि वो जाइज़ काम नहीं था। ऐसा नहीं कि मेरा ता'ल्लुक़ बहुत अमीर घर से है; बिना आ़जिज़ी के अ़र्ज़ कर रहा हूं के: मेरा शुमार आ़म लोगों में ही होता है, जो काम मैं कर सकता हूं वो आप नहीं कर सकते? नहीं कर सकते तो ये याद रखो! यहां तो तक्लीफ़ में मददगार मिल जाते हैं लेकिन मेरी जान की क़सम! आख़िरत में अल्लाह के सिवा न तो अपना कोई मददगार पाओगे न ही कोई दोस्त।
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