Friday 29 July 2022

Aqamat ke waqt baithna chahiye. | Hanfi Namaz

 Dalil Ahle Hagiso Ke Ghar Se. 



۩ Hafiz ibn Hajar ne likha hai, “Aksar ka ye mazhab hai ki agar Imam Masjid me Maujud ho toh log Iqamat khatam hone se pahle khade na ho.”



Fath ul-Bari, 2/120.


۩ Imam Tirmizi farmate hai, “Aur baaz ne kaha: Jab Imam masjid me ho aur namaz ki iqamat ho jaye to log us waqt khade honge jab iqamat kahne wala "Qad iqamatis salaah" kahe aur yahi qawl Abdullah bin Mubarak ka hai.” 


Sunan Tirmazi: 592.


Imam Tirmizi ne Abdullah bin Mubarak r.h. ke jo aqwaal sunan Tirmizi me naqal kiya hai, inki sahih sanad apni kitab Al-Ilal (as-Sageer) me zikr kar di hai.


Dekhye ص ا, dusra nuskha ص٨٨٩, matbua'a darus'salam Sunan Tirmizi.


۩ Imam Ahmad bin Hambal ne farmaya: “Agar Imam Masjid me ho to log us waqt khade ho jab woh (iqamat kahne wala) "Qad iqamatis salaah" kahe. Imam Ishaq bin Rahwayh ne is ki mukammal ta'eed farmayi.”


Masail Ahmad wa Ishaq, rawayatu Ishaq bin Mansoor Al-kosaj, 1/127-128, sentence-179.


۩ Imam Abu Bakr bin Ibrahim bin al Manzar al nisaburi r.h. ne farmaya: “Agar imam masjid me inke sath ho to jab woh khada ho log khade ho jaye aur agar wo imam ke baahar aane ka intzar kar rahe hai toh jab use dekhe khade ho jaye, aur agar use na dekhe to khade na ho. Is ki daleel (Sayyedna) Abu Qatada r.a. ki hadees hai.”


Al Usat nuskha jadeeda, jild-4, safa-188.


Marfoo ahadees aur in aasaar ko madhhe nazar rakhate hue arz hai ke jab iqamat kahi jaye yani 'Qad iqamatis salaah' ke alfaz padhe jaye toh log namaz padhne ke liye khade ho jaye, aur agar Imam ya iqamat kahne wale ke sath khade ho jaye (ba-shart ye ke Imam masjid me maujud ho) to ye bhi jaiz hai. وﷲ اعلم.


- Shaykh Zubair Ali Zai, Al Hadith - 85, page


Dalil deoband Tablig jamat Ke Kitab Se. 


Akamat ke shuru me baithna deoband ke bahot bade alim se sabit.


Muallif

*Maulana muhammed rafiyat qasimi*

*Darul ulum madrasa e  deoband*


Kitab 👇🏻

*Masail e rafayate qasmi*

*Masail e imamat*

*Page. no 125*


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Wednesday 13 July 2022

Qabar ke Pass Quraan Paak Padhna Jayaz Hai. Quraan /Qabr

 *Qabr ke Paas Qur'an ki Tilawat karne ko Bidat kehne wale*


 "jyada aqalmand" Logo ko Imam Byhaqi ki Sahih Sanad se 


*SAHABA E KIRAM KA FATIHA PADHNA SABIT*


📒Imam Byhaqi


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Jo koi is Hadeesh ko Zaif keh kar *SAHABA KA FATIHA PADHNA* Najaiz kahe unke lie,

Imam Ibn Qayyim al Jawziyyah ki Kitab ar Rooh se Riwayat, Abdullah ibn Umar رضي.الله .عنه  ne khud huqm farmaya ke, *MERI QABR PAR SURAH BAQRAH PADHNA*

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*Mayyat Ko Dafan Karne Ke Baad Dua Aur Quran Padhna*


Hazrat Imam Nawawi Al Mutawaffah *676* Hijri رحمۃ اللہ علیہ Ne Ek Pura Baab Bandha (Chapter) Likha

*Mayyat Ko Dafnane Ke Baad Uski Qabr Par Dua Karna, Astagfaar Karna, Aur Quran Padhna,*


_Hazrat Imam Shafai Al Mutawaffah 204 Hijri رحمۃ اللہ علیہ Farmate Hain_ *Mustahab Ye Hai Ki Dafnane Ke Baad Marne Wale Musalman Ki Qabr Ke Paas Quran Ki Ayat Tilawat Kare Ya Pura Para Padhe To Behtar Hai Aur Uski Maghfirat Ki Dua Kare Uske Liye Astagfaar Kare*


*Reference Book*

Riyadhus Saliheen

Page *284*

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📗📄👇🏼





Saturday 9 July 2022

Namaaz Ki Niyat | Eid ul Azha

 1] पंच वक्त कि नमाजो मे यह नियत करे👉 नियत कि मैने 2 रकात फज़र कि फर्ज वासते अल्लाह तआ़ला के रुख मेरा काबा शरीफ के तरफ 


इसि तरह नमाज के नाम बदले 


2]नमाज ईदुल अज़्हा 

नियत : नियत की मैंने दो रकाअत नमाज ईदुल अज़्हा वाजिब जाईद छः तकबीरो के वास्ते अल्लाह के, पीछे इस ईमाम के, मुॅह मेरा काबा शरीफ की तरफ 

तकबीर اللہ اکبر कहते हुए दोंनो हाथ कानो तक उठाकर हाथो को जेरे नाफ बांध कर सना पढे‍। 

Thursday 7 July 2022

Aqeeka ka Bayaan /Akika/अक़ीक़ा का बयान

 *🌹अक़ीक़ा का बयान🌹*


*_अक़ीक़ा के शरई माना:-, बच्चा पैदा होने के शुक्रिया में जो जानवर ज़िबह किया जाता है उसको अक़ीक़ा कहते हैं_*


*📕बहारे शरीअत जिल्द,3 सफह 355*


*_अक़ीक़ा का लफ्ज़ी माना,:- अक़ीक़ा बना है,عقُّٗ से जिसका माना काटना,अलग करना,_*


*📕मिरआत जिल्द,6 सफह 02*


*_अक़ीक़ा करना सुन्नते मुस्तहब्बा है,फर्ज़ या वाजिब नहीं,अगर गुन्जाइश हो तो ज़रूर ज़रुर करना चाहिए,पर किसी आदमी को क़र्ज़ या सूद ब्याज़ ले कर करना जायज़ नहीं,_*


*📕माखूज़ अज़ इस्लामी ज़िन्दगी,सफह,27*


*_जिस बच्चे नें अक़ीक़े का वक्त पाया यानि वह बच्चा सात दिन का हो गया और बिला उज्र जबकि इस्तिताअत (यानि ताक़त) भी हो यानि रुपया पैसा मौजूद होने के बावजूद अक़ीक़ा नहीं किया गया तो वह अपने माँ बाप की शफाअत नहीं करेगा,हदीसे पाक में है कि लड़का अपने अक़ीक़े में गिरवीं है_*


*📕तिर्मिज़ी शरीफ,जिल्द,3 सफह 177,हदीस 1027*


*_इमाम अहमद रहमतुल्लाह तआला अलैहि फरमाते हैं बच्चे का जब तक अक़ीक़ा ना किया जाये उसको वालिदैन यानि माँ बाप के ह़क़ में शफाअत करने से रोक दिया जाता है_*


*📕अशिअ अतुल्लम्आत जिल्द 3 सफह 512*


*_सदरुश्शरीअह हज़रते अल्लामा मुफ्ती मोहम्मद अमजद अली फरमाते हैं गिरवी होने का मतलब ऐ है कि उस से पूरा नफ्अ हासिल ना होगा जब तक अक़ीक़ा ना किया जाऐ और बाज़ मुहद्दीसीन नें कहा बच्चे की सलामती और उसका  फलना फूलना और उसमें अच्छे अवसाफ यानि उमदा खूबियां होना अक़ीक़े के साथ वाबस्ता है_*


*📕बहारे शरीअत जिल्द 3 सफह 354*


*_जिसका अक़ीक़ा ना हुआ हो वह अपना अक़ीक़ा जवानी बुढ़ापे में कभी भी करा सकता है,_*


*📕फतावा रज़विया जिल्द,20 सफह 588*


*_हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम नें ऐलाने नुबुव्वत के बाद खुद अपना अक़ीक़ा किया,_*


*📕मुसन्निफ अबदुर रज़्ज़ाक़ जिल्द 4 सफह 254 हदीस,2174*


*_अगर बच्चा पैदा होने के बाद और सात दिन से पहले ही मर जाये तो अब अक़ीक़ा की हाजत नहीं,ऐसा बच्चा शफाअत कर सकेगा,आला हज़रत फरमाते हैं,जो मर जाये किसी भी उम्र का हो मरने के बाद अक़ीक़ा नहीं हो सकता,बच्चा अगर सातवें दिन से पहले ही मर गया तो उस के अक़ीक़ी ना करने से कोई असर उसकी शफाअत वगैरह पर नहीं कि वोह वक्ते अक़ीक़ा आने से पहले ही मर गया,कियोंकि अक़ीक़े का वक्त शरीअत में सातवां (7,वां )दिन है जो बच्चा बालिग होने से पहले मर गया और उसका अक़ीक़ा कर दिया था,या अक़ीक़े की इस्तिताअत ( ताक़त) ना थी,या सातवें दिन से पहले ही मर गया,इन सब सूरतों में वह माँ बाप की शफाअत करेगा,जबकि यह,(यानि माँ बाप) दुनिया से बा ईमान गये हों_*


*📕फतावा रज़विया जिल्द,20,सफह 596-597*


*_अक़ीक़े का वक्त 7वें दिन से शुरुआत होता है और सुन्नत वह अफज़ल 7वां दिन ही है पर अगर किसी ने 7वें दिन से पहले ही अक़ीक़ा कर दिया तो भी हो जायेगा,_*


*📕अक़ीक़ा के बारे में सवाल जवाब सफह 7*


*_आला हज़रत फरमाते हैं कि,अक़ीक़ा विलादत (पैदाइश) के 7 वें रोज़,सुन्नत है और यही अफज़ल है,और अगर सातवें दिन ना करा सका तो चौदहवें दिन इक्कीसवीं दिन,,इसी तरह़ सदरूश्शरीअह बहारे शरीअत में फरमाते है कि अक़ीक़ा के लिए 7वां दिन बेहतर है और सातवाँ दिन ना कर सकें तो जब चाहें कर सकते हैं,सुन्नत अदा हो जायेगी,_*


*_📕फतावा रज़विया जिल्द,20 सफह 586_*

*📕बहारे शरीअत हिस्सा,15, सफह,356*


*_बेहतर है कि अक़ीक़ा जब भी करें 7 वें दिन का लिह़ाज़ रखें,जैसे 7 वें दिन फिर 14 वें दिन फिर 21वें दिन और अगर काफी दिन हो गया अब याद नहीं तो सातवें दिन इस तरह निकालें,कि जिस दिन बच्चा पैदा हुआ हो उस दिन को याद रखें उस से एक दिन पहले वाला दिन जब भी आये वह सातवाँ होगा,यूँ समझें कि जुमां को पैदा हुआ तो जुमेरात सातवां दिन होगा और सनीचर को पैदा हुआ तो जुमां को सातवां दिन होगा,इसी तरह हिसाब लगा लें_*


*📕बहारे शरीअत जिल्द,3 हिस्सा,15 सफह 356*


*_लड़के के अक़ीक़े में दो बकरे और लड़की में एक  बकरी ज़िबह की जाये यानि लड़के में नर जानवर और लड़की में मादा मुनासिब है, पर ऐ जान लें कि ऐ ज़रुरी नहीं अगर लड़के के अक़ीक़े में बकरीयां  और लड़की में बकरा किया जब भी हरज नहीं अक़ीक़ा हो जायेगा,इसी तरह लड़के के अक़ीक़े में दो की जगह एक ही की तो भी अक़ीक़ा हो जायेगा,_*


*📕फतावा रज़विया जिल्द 20 सफह 584*

*📕बहारे शरीअत हिस्सा,15 जिल्द 3 सफह 357*


*_अक़ीक़े का जानवर उन्हीं शराएत के साथ होना चाहिए जैसा क़ुरबानी के लिए होता है यनि बकरा बकरी एक साल से कम ना हों,जो क़ुरबानी का मसला है वही अक़ीक़े के जानवर वह गोश्त का मसला है, अक़ीक़े का गोश्त गरीब मिस्कीन रिश्ते दार दोस्त अहबाब को कच्चा तक़सीम किया जाये या पका कर दिया जाए या महमान नवाज़ी के तौर पर दावत खिलाया जाऐ सब सूरतें जायज़ हैं,और अगर सब गोश्त रखना चाहे तो सब भी रख सकता है_*


*📕फतावा रज़विया जिल्द,20 सफह 584*

*📕बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफह 357*


*_बच्चे का सर मूंन्डने (बाल छिलाना) के बाद सर पर ज़ाफरान पीस कर लगा देना बेहतर है,और बाल के वज़न चांदी सदक़ा करना चाहिए,अगर इस्तिताअत है तो,_*


*_📕बहारे शरीअत हिस्सा 15 जिल्द 3 सफह 353_*


*_बेहतर है कि अक़ीक़े के गोश्त की हड्डी ना तोड़ी जाऐ बल्कि हड्डियों पर से गोश्त उतार लिया जाए ऐ बच्चे की सलामती की नेक फाल है यानि नेक शगून है और अगर हड्डी तोड़ कर गोश्त बनाया जाऐ तो भी कोई हरज नहीं गोश्त को जिस तरह चाहें पका सकते हैं मगर मीठा पकाया जाऐ तो बच्चे के अखलाक़ अच्छे होने की फ़ाल है_*


*📕बहारे शरीअत हिस्सा 15 जिल्द,3 सफह 357*


*_मीठा गोश्त बनाने के 2 तरीक़े मैं लिख रहा हूँ,,,एक किलो गोश्त,आधा किलो मीठा दही,सात दाने छोटी इलाईची,50 ग्राम बादाम,हसबे ज़रुरत घी या तेल सब मिलाकर पका लिजीए पकने के बाद ज़रुरत के मुताबिक़ चाशनी डालिए,ज़ीनत यानि खूबसूरती के लिए गाज़र के बारीक रेशे बना कर और किस्मिस वगैरह भी डाले जा सकते हैं,और दूसरा तरीक़ा एक किलो में आधा किलो चुकन्दर डाल कर हसबे मामूल पका लिजीए_*


*_अवाम में ऐ जो मशहूर है कि अक़ीक़े का गोश्त बच्चे के मां बाप और दादा दादी नाना नानी ना खाऐं ऐ मह़ज़ गलत है इसका कोई सबूत नहीं,यानि अक़ीक़े का गोश्त माँ बाप दादा दादी नाना नानी सब खा सकते हैं,_*


*📕बहारे शरीअत हिस्सा 15 जिल्द 3 सफह 357*


*_अक़ीक़े की खाल का वही हुक्म है जो क़ुरबानी के खाल का है कि अपने सरफ में लाऐं या मिस्कीन को दें या किसी और नेक काम मस्जिद या मदरसे में दें_*


*📕बहारे शरीअत जिल्द 3 सफह 357*

Qabristan Jakar Salaam Karna | Qabr walo Ko salaam Karna |Hadees

 Hazrat Abdullah Bin Abbas رضي الله عنه Se Riwayat Rasool Allah ﷺ Madinah Shareef Me Kuch Qabro Ke Paas Se Ghuzray To Un Qabro Ki Taraf Rukh...