*हिन्दी/hinglish* *हज़रत उमर फारूक़*
*===============================*
* आपका नाम उमर और लक़ब फारूक़ है,आपका नस्ब नामा यूं है उमर बिन खत्ताब बिन अब्दुल उज़्ज़ा बिन रियाह बिन क़ुर्त बिन रज़्ज़ह बिन अदी बिन कअब बिन लवी
* आपकी पैदाईश आम्मुल फील के 13 साल बाद बताई जाती है हालांकि ये सही नहीं है क्योंकि आपकी विसाल की तारीख 1 मुहर्रम 24 हिज्री है और उम्र मुबारक 63 साल मशहूर है,इस हिसाब से आप आम्मुल फील के वाक़िये के 16 साल बाद पैदा हुए और ईमान लाने के वक़्त आपकी उम्र 30 साल थी
* आपके ईमान लाते वक़्त कितने मुसलमान हो चुके थे इसपर कई क़ौल हैं मगर मश्हूर यही है कि 33 मर्द और 6 औरतों के बाद आपने इस्लाम क़ुबूल किया और आपसे 40 का अदद पूरा हुआ
* आपके ईमान लाने का वाक़िया यूं है कि एक रोज़ आप तलवार लेकर हुज़ूर का खात्मा करने को निकल पड़े,रास्ते में हज़रत नुऐम बिन अब्दुल्लाह क़ुरैशी से मुलाकात हुई ये भी ईमान ला चुके थे मगर हज़रत उमर को पता नहीं था,हज़रत उमर को जलाल में देखकर आपने पूछा कि कहां का इरादा है तो कहने लगे कि बानिये इस्लाम का काम तमाम करने को निकला हूं,तो हज़रत नुऐम कहते हैं कि पहले अपने घर की तो खबर लो कि तुम्हारी बहन और तुम्हारे बहनोई भी इस्लाम क़ुबूल कर चुके हैं,ये सुनते ही आप पहले अपने घर की तरफ गए और बाहर से ही क़ुर्आन पढ़ने की आवाज़ सुनाई दी,आपने दरवाज़ा खोलने को कहा तो दोनों मिया बीवी डर गए और इसी हालत में बहन ने दरवाज़ा खोला तो आप चिल्लाकर बोले कि क्या तू भी मुसलमान हो गयी,और ये कहते कहते अपने बहनोई पर झपट पड़े और उन्हें मारने लगे बहन बीच में आयी तो तलवार की बट से उसके सर पर भी मारा तो उनका चेहरा लहू लुहान हो गया,ये सब होने के बाद भी बहन बोली कि तुम चाहे जो करलो पर हम इस्लाम नहीं छोड़ेंगे,अब जब हज़रत उमर ने उनका चेहरा देखा और उनकी बातें सुनी तो गुस्सा ठंडा हो गया और क़ुर्आन मांगी कि तुम क्या पढ़ रहे थे जैसे ही क़ुर्आन की आयत पर नज़र पड़ी फौरन चीख पड़े कि ये कलाम किसी शायर का नहीं हो सकता कहा कि मुझे उनके पास ले चलो,हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम उस वक़्त हज़रत अरक़म के घर में मुक़ीम थे दरवाज़े पर पहुंचकर आवाज़ दी जब दरवाज़े की झरी से देखा तो हज़रत उमर नंगी तलवार लिए खड़े थे,अंदर लोगों के होश उड़ गए मगर हज़रत अमीर हमज़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु जो ईमान ला चुके थे बोले कि दरवाज़ा खोलो अगर नेक नियती से आया होगा तो मरहबा वरना उसी की तलवार से उसका सर उड़ा देंगे,दरवाज़ा खुला हज़रत उमर अन्दर आये तो खुद हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने आगे बढ़कर उनका बाज़ू पकड़ा और फरमाया कि ऐ खत्ताब के बेटे कब तक कुफ़्र में पड़ा रहेगा अब मुसलमान हो जा,आपके इतना कहते ही हज़रत उमर ने तलवार छोड़ दी और कल्मा पढ़कर मुसलमान हो गए,अब तो हर तरफ नारे तकबीर का शोर मच गया और खुद हज़रत उमर सबको लेकर हरम में दाखिल हुए और अलानिया नमाज़ पढ़ी गई
* आपने 6 या 7 निकाह किये जिनमे से 2 को ईमान न लाने की वजह से तलाक़ दे दिया और एक को किसी और बात की वजह से तलाक़ दी,इन सबसे 5 बेटे और 4 बेटियां हुई,इनमें से आपकी बेटी हज़रते हफ्सा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का निकाह हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से हुआ और आप अज़्वाजे मुतह्हरात में दाखिल हुईं और हज़रते उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का ससुर होने का मर्तबा मिला
* क़ुर्आन में 20 या उससे ज़्यादा ऐसी आयतें हैं जो हज़रते उमर फारूक़े आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की राय के मुताबिक़ नाज़िल हुई हैं जिन्हे मुआफिकते क़ुर्आनी कहते हैं,उन सब का तज़किरा तो फिर कभी करूंगा इन शाअ अल्लाह मगर यहां आपके लक़ब फारूक़ होने का वाक़िया जिससे जुड़ा हुआ है सो उसका तज़किरा करता हूं,वाक़िया यूं है कि एक मुनाफिक़ और एक यहूदी के दर्मियान सैराबी को लेकर झगड़ा था,हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में जब ये मुआमला पेश आया तो चुंकि हक़ पर यहूदी था तो आपने उसके हक़ में फैसला दे दिया,मुनाफिक़ ये बात नहीं माना और कहने लगा कि हम उमर के पास चलकर फैसला करायेंगे उसने ये सोचा कि जब मैं ये कहूंगा कि मैं मुसलमान हूं और ये यहूदी तो फौरन ही हज़रते उमर मेरे हक़ में फैसला कर देंगे और ये सोचकर दोनों हज़रत उमर की बारगाह में पहुंचे,सबसे पहले यहूदी ने वो बात कहदी कि अभी हम हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के दरबार से होकर आये हैं और उन्होंने मेरे हक़ में फैसला सुना दिया है पर ये नहीं मानता कहता है कि ये आपका ही फैसला मानेगा,इतना सुनते ही हज़रत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु उठे और कहते हैं कि अच्छा फिर मैं ही इसका फैसला करता हूं अंदर गए तलवार लाये और उसकी गर्दन उड़ा दी और फरमाया जो हुज़ूर का फैसला नहीं मानता उसका फैसला मैं ऐसे ही करूंगा,इस पर एक नायत नाज़िल हुई जो कि पारा 5 सूरह निसा आयत नं 65 पर है तर्जुमा यूं है कि "तो ऐ महबूब तुम्हारे रब की कसम वो मुसलमान न होंगे जब तक अपने आपस के झगड़े में तुम्हे हाकिम न बनाएं फिर जो कुछ तुम हुक्म फरमा दो अपने दिलो में उससे रुकावट न पाएं और जी से मान लें" तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि खुदा का हुक्म आ चुका उमर किसी मुसलमान की जान नहीं ले सकता और वहीं से आपका लक़ब हुआ फारूक़ यानि फर्क़ करने वाला,सुब्हान अल्लाह
* युंही शुरू इस्लाम अज़ान में हय्या अलस सलाह पढ़ा जाता रहा मगर बाद में हज़रत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने अशहदु अल ला इलाहा इल्लल्लाह के बाद अशहदु अन्ना मुहम्मदुर रसूल अल्लाह बढ़ाने की तज्वीज पेश की जिसे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जैसा उमर कहते हैं करो,सुब्हान अल्लाह
* आपने 23 जुमअदल उखरा 13 हिज्री यानि 632 ईसवी को खिलाफत पाई और 10 साल 6 महीने और चंद दिन आपकी खिलाफत रही,इस दौरान इस्लाम को खूब फरोग़ मिला 1036 शहर उनके क़सबों समेत फतह किये गए 4000 मस्जिदें तामीर की गयी,मस्जिदे नब्वी को भी वसीय करने की शुरुआत आपने ही की,आपने ही निज़ामे हुकूमत का दौर शुरू किया
* जब तमाम सहाबा छिप छिपकर मक्का से मदीना हिजरत कर रहे थे आपने अलानिया हिजरत की और फरमाया कि मैं जा रहा हूं जिस किसी को अपनी बीवी को बेवा और बच्चों को यतीम करना हो वो ही मुझे रोकने की कोशिश करे
* आप तमाम इस्लामी जंगों में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के साथ शामिल रहे
* आपके मरतबे के लिए बस इतना काफी है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि अगर मेरे बाद कोई नबी आना मुमकिन होता तो उमर नबी होते,दूसरी जगह हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं खुदा की कसम उमर जिस रास्ते से गुज़रते हैं शैतान उस रास्ते से हट जाता है,अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर
* हज़रते सिद्दीक़े अकबर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की अलालत में आपने उनकी इजाज़त से 15 दिन नमाज़ों की इमामत फरमाई
* 26 जिल्ल हज्ज 23 हिजरी फज्र के वक़्त ऐन नमाज़ की हालत में मरदूद अबू लुलू ने आपको खंजर मारकर ज़ख़्मी कर दिया,चंद दिन ज़ख़्मी रहकर आपने 1 मुहर्रम 24 हिज्री को शहादत पाई और उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आईशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा की इजाज़त से रौज़-ए अनवर में दफ्न किये गए,आपकी उम्र 63 साल हुई
📕 तारीखुल खुल्फा,सफह 182
📕 शाने सहाबा,सफह 94
📕 सीरतुल मुस्तफा,सफह 106
📕 खाज़िन,जिल्द 1,सफह 397
📕 तारीखे इस्लाम,जिल्द 1,सफह 366
📕 मदारिजुन नुबूवत,जिल्द 2,सफह 915
*===============================*
*===============================*
* Aapka naam umar aur laqab farooq hai,aapka nasb naama yun hai umar bin khattab bin abdul uzza bin riyah bin qurt bin razzah bin addi bin ka'ab bin lavi
* Aapki paidayish aammul feel ke 13 saal baad batayi jaati hai halanki ye sahi nahin hai kyunki aapki wisaal ki tareekh 1 muharram 24 hijri hai aur umr mubarak 63 saal mashhoor hai,is hisaab se aap aammul feel ke waqiye ke 16 saal baad paida hue aur imaan laane ke waqt aapki umr 30 saal thi
* Aapke imaan laate waqt kitne musalman ho chuke the ispar kayi qaul hain magar mashhoor yahi hai ki 33 mard aur 6 aurton ke baad aapne islam qubool kiya aur aapse 40 ka adad poora hua
* Aapke imaan laane ka waqiya bada hi dilchasp hai hua yun ki ek roz aap talwar lekar huzoor ka khaatma karne ko nikal pade,raaste me hazrat nuaim bin abdullah quraishi se mulakat huyi ye bhi imaan la chuke the magar hazrat umar ko pata nahin tha,hazrat umar ko jalaal me dekhkar aapne poochha ki kahan ka iraada hai to kahne lage ki baaniye islaam ka kaam tamam karne ko nikla hoon,to hazrat nuaim kahte hain ki pahle apne ghar ki to khabar lo ki tumhari bahan aur tumhare bahnoyi bhi islam qubool kar chuke hain,ye sunte hi aap pahle apne ghar ki taraf gaye aur baahar se hi quran padhne ki aawaz sunayi di,aapne darwaza kholne ko kaha to dono miya biwi darr gaye aur isi haalat me bahan ne darwaza khola to aap chillakar bole ki kya tu bhi musalman ho gayi,aur ye kahte kahte apne bahnoyi par jhapat pade aur unhein maarne lage bahan beech me aayi to talwar ki bat se uske sar par bhi maara to unka chehra lahu luhaan ho gaya,ye sab hone ke baad bhi bahan boli ki tum chahe jo karlo par hum islam nahin chhodenge,ab jab hazrat umar ne unka chehra dekha aur unki baatein suni to gussa thanda ho gaya aur quran maangi ki tum kya padh rahe the jaise hi quran ki aayat par nazar padi fauran cheekh pade ki ye kalaam kisi jhoothe ka nahin ho sakta kaha ki mujhe unke paas le chalo,huzoor sallallahu taala alaihi wasallam us waqt hazrat arqam ke ghar me muqeem the darwaze par pahunchkar aawaz di jab darwaze ki jhari se dekha to hazrat umar nangi talwar liye khade the,andar logon ke hosh udd gaye magar hazrat ameer hamza raziyallahu taala anhu jo imaan la chuke the bole ki darwaza kholo agar nek niyati se aaya hoga to marhaba warna usi ki talwar se uska sar uda denge,darwaz khula harat umar andar aaye to khud huzoor sallallahu taala alaihi wasallam ne aage badhkar unka baazu pakda aur farmaya ki ai khattab ke bete kab tak kufr me pada rahega ab musalman ho ja,aapke itna kahte hi hazrat umar ne talwar chhod di aur kalma padhkar musalman ho gaye,ab to har taraf nare takbeer ka shor mach gaya aur khud hazrat umar sabko lekar haram me daakhil hue aur alaniya khuda ki ibaadat ki
* Aapne 6 ya 7 nikah kiye jinme se 2 ko imaan na laane ki wajah se talaaq de diya aur ek ko kisi aur baat ki wajah se talaaq di,in sabse 5 bete aur 4 betiyan huyi,inme se aapki beti hazrate hafsa raziyallahu taala anhu ka nikah huzoor sallallahu taala alaihi wasallam se hua aur aap azwaje mutahharat me daakhil huyin aur hazrate umar raziyallahu taala anhu ko huzoor sallallahu taala alaihi wasallam ka sasur hone ka martaba mila
* Quran me 20 aisi aaytein hain jo hazrate umar farooqe aazam raziyallahu taala anhu ki raaye ke mutabiq naazil huyi hain jinhe muafiqate qurani kahte hain,un sab ka tazkira to phir kabhi karunga in shaw ALLAH magar yahan aapke laqab FAROOQ hone ka waqiya isi se juda hua hai so uska tazkira karta hoon,waqiya yun hai ki ek munafiq aur ek yahudi ke darmiyan sairabi ko lekar jhagda tha,huzoor sallallahu taala alaihi wasallam ki baargah me jab ye muamla pesh aaya to chunki haq par yahudi tha to aapne uske haq me faisla de diya,munafiq ye baat nahin maana aur kahne laga ki hum umar ke paas chalkar faisla karayenge usne ye socha ki jab main ye kahunga ki main musalman hoon aur ye yahudi to fauran hi hazrate umar mere haq me faisla kar denge aur ye sochkar dono hazrat umar ki baargah me pahunche,sabse pahle yahudi ne wo baat kahdi ki abhi hum huzoor sallallahu taala alaihi wasallam ke darbar se hokar aaye hain aur unhone mere haq me faisla suna diya hai par ye nahin maanta kahta hai ki ye aapka hi faisla maanega,itna sunte hi hazrat umar raziyallahu taala anhu uthe aur kahte hain ki achchha phir main hi iska faisla karta hoon andar gaye talwar laaye aur uski gardan uda di aur farmaya jo huzoor ka faisla nahin maanta uska fasila main aise hi karunga,is par ek naayat naazil huyi jo ki paara 5 surah nisa aayat no 65 par hai tarjuma yun hai ki "To ai mahboob tumhare Rub ki kasam wo musalman na honge jab tak apne aapas ke jhagde me tumhe haakim na banayein phir jo kuchh tum hukm farma do apne dilo me usse rukawat na payein aur jee se maan lein" to huzoor sallallahu taala alaihi wasallam ne farmaya ki khuda ka hukm aa chuka umar kisi musalman ki jaan nahin le sakta aur wahin se aapka laqab hua FAROOQ yaani farq karne waala,SUBHAAN ALLAH
* Yunhi shuru azaan me ASHHADU AL LA ILAHA ILLALLAH ke baad HAYYA ALAS SALAH padha jaata raha magar baad me hazrate umar farooqe aazam ne ASHHADU AL LA ILAHA ILLALLAH ke baad ASHHADU ANNA MUHAMMADUR RASOOL ALLAH badhane ki tajweez pesh ki jise huzoor sallallahu taala alaihi wasallam ne farmaya ki jaisa umar kahte hain karo,SUBHAN ALLAH
* Aapne 23 jumadal ukhra 13 hijri yaani 632 eesvi ko khilafat paayi aur 10 saal 6 mahine aur chund din aapki khilafat rahi,is dauran islaam ko khoob farogh mila 1036 shahar unke aqsbo samet fatah kiye gaye 4000 masjidein tameer ki gayi,masjide nabwi ko bhi wasiy karne ki shuruaat aapne hi ki,aapne hi nizame hukumat ka daur shuru kiya
* Jab tamam sahaba chhip chhipkar makka se madina hijrat kar rahe the aapne alaniya hijrat ki aur farmaya ki main ja raha hoon jis kisi ko apni biwi ko bewa aur bachchon ko yateem karana ho wo hi mujhe rokne ki koshish kare
* Aap tamam islami jungon me huzoor sallallahu taala alaihi wasallam ke saath shaamil rahe
* Aapke martabe ke liye bas itna kaafi hai ki huzoor sallallahu taala alaihi wasallam farmate hain ki agar mere baad koi nabi aana mumkin hota to UMAR nabi hote,doosri jagah huzoor sallallahu taala alaihi wasallam farmate hain khuda ki kasam UMAR jis raaste se guzarte hain shaitan us raaste se hat jaata hai,ALLAHU AKBAR ALLAHU AKBAR
* Hazrate siddiqe akbar raziyallahu taala anhu ki alalat me aapne unki ijazat se 15 din namazo ki imaamat farmayi
* 26 zill hajj 23 hijri fajr ke waqt ain namaz ki haalat me mardood abu looloo ne aapko khanjar maarkar zakhmi kar diya,chund din zakhmi rahkar aapne 1 muharram 24 hijri ko shahadat paayi aur ummul momeneen sayyadna aaisha siddiqa raziyallahu taala anha ki ijazat se rauzaye anwar me dafn kiye gaye,aapki umr 63 saal huyi
📕 Taarikhul khulfa,safah 182
📕 Shaane sahaba,safah 94
📕 Siratul mustafa,safah 106
📕 Khaazin,jild 1,safah 397
📕 Tarikhe islam,jild 1,safah 366
📕 Madarijun nubuwat,jild 2,safah 915
POST BY:
*NAUSHAD AHMAD "ZEB" RAZVI*
*ALLAHABAD*
*================================*