★ *हागिया सोफिया क्या है ?*
>>> मई 1453 में जब उस्मानी ख़लीफ़ा हज़रत महमद-२ सुल्तान मुहम्मद फ़ातेह अलैहिर्रहमा ने दुनिया का सब से मशहूर व तारीख़ी (ऐतिहासिक) शहर "कुस्तुन्तुनिया" (कॉन्सटेनिनोपल) फ़त्ह किया था जिसे आज तुर्की की राजधानी "इस्तांबुल" कहा जाता है।
>>> येह *"हागिया सोफ़िया"* जो कि ऑर्थोडॉक्स ईसाईयों (कट्टरपंथी ईसाई) के पुराने चर्च में से एक था, जब तुर्क उस्मानी लश्कर ने शहर कुस्तुन्तुनिया पर हमला किया तब तक़रीबन 453 दिन के बा'द उस्मानी लश्कर को फ़त्ह हासिल हुई और इतनी लंबी लड़ाई के बा'द बाजिंटिनी (ऑर्थोडॉक्स ईसाई) लश्कर के सिपाहीयों के हौसले पस्त हो गए थे तो शहर के आम लोग अपने अपने नजदीकी गिरजाघरों की तरफ दौड़ने लगे और रो-रो कर उन की प्रेयर्स में लग गए। शहर के पादरियों (ईसाई धर्मगुरु) ने भी गिरजाघरों में घंटीया जोर जोर से बजानी शुरू कर दी।
>>> उस वक़्त पूरे शहर के ईसाई अपने आपसी मतभेद (ऑर्थोडॉक्स और केथलिक) भुला कर इस ऐतिहासिक चर्च "हागिया सोफ़िया" में इखट्ठा हो गए थे।
>>> जब शहर फ़त्ह हुआ तो सुल्तान मुहम्मद फ़ातेह रहमतुल्लाही अलैह सब से पहले इस चर्च "हागिया सोफिया" में दाखिल हुए थे। और दाखिल होते है आप ने इस चर्च को मस्जिद में तब्दील कर ने का हुक्म दिवा और इस का नाम कुछ के नज़दीक अया सोफिया और कुछ नज़दीक सुलेमान मस्जिद या सुल्तान अहमद मस्जिद रखा गया, और कुस्तुन्तुनिया की फ़त्ह के ठीक दो रोज़ बा'द इसी मस्जिद में जुमुआ की नमाज़ अदा की।
>>> आखिर में जब तुर्की की इस अज़ीम ख़िलाफ़त का अंत 19वी सदी में हुआ तब मुस्तफा कमाल पाशा जिस ने तुर्की के अज़ीम सुल्तान हमीद-२ का तख्ता पलट कर दिया उसी दौरान उस ने इस मस्जिद को एक म्यूज़ियम में तब्दील कर दिया।
>>> आज भी तुर्की के प्रेसिडेंट रजब तय्यब इदरगन साहब अपने बयानों में इस हागिया सोफिया का ज़िक्र करते रहते है और कहते है कि हम किसी भी हाल में इसे म्यूज़ियम तस्लीम नही कर सकते कि इस मस्जिद को म्यूज़ियम में तब्दील करना एक बहुत बड़ी गलती थी कि अब वक्त आगया है कि इसे अब दुबारा मस्जिद बना दिया जाए।
>>> अल्लाह तआला जल्द इस मस्जिद को दुबारा कायम फरमाए आमीन।
>>> मई 1453 में जब उस्मानी ख़लीफ़ा हज़रत महमद-२ सुल्तान मुहम्मद फ़ातेह अलैहिर्रहमा ने दुनिया का सब से मशहूर व तारीख़ी (ऐतिहासिक) शहर "कुस्तुन्तुनिया" (कॉन्सटेनिनोपल) फ़त्ह किया था जिसे आज तुर्की की राजधानी "इस्तांबुल" कहा जाता है।
>>> येह *"हागिया सोफ़िया"* जो कि ऑर्थोडॉक्स ईसाईयों (कट्टरपंथी ईसाई) के पुराने चर्च में से एक था, जब तुर्क उस्मानी लश्कर ने शहर कुस्तुन्तुनिया पर हमला किया तब तक़रीबन 453 दिन के बा'द उस्मानी लश्कर को फ़त्ह हासिल हुई और इतनी लंबी लड़ाई के बा'द बाजिंटिनी (ऑर्थोडॉक्स ईसाई) लश्कर के सिपाहीयों के हौसले पस्त हो गए थे तो शहर के आम लोग अपने अपने नजदीकी गिरजाघरों की तरफ दौड़ने लगे और रो-रो कर उन की प्रेयर्स में लग गए। शहर के पादरियों (ईसाई धर्मगुरु) ने भी गिरजाघरों में घंटीया जोर जोर से बजानी शुरू कर दी।
>>> उस वक़्त पूरे शहर के ईसाई अपने आपसी मतभेद (ऑर्थोडॉक्स और केथलिक) भुला कर इस ऐतिहासिक चर्च "हागिया सोफ़िया" में इखट्ठा हो गए थे।
>>> जब शहर फ़त्ह हुआ तो सुल्तान मुहम्मद फ़ातेह रहमतुल्लाही अलैह सब से पहले इस चर्च "हागिया सोफिया" में दाखिल हुए थे। और दाखिल होते है आप ने इस चर्च को मस्जिद में तब्दील कर ने का हुक्म दिवा और इस का नाम कुछ के नज़दीक अया सोफिया और कुछ नज़दीक सुलेमान मस्जिद या सुल्तान अहमद मस्जिद रखा गया, और कुस्तुन्तुनिया की फ़त्ह के ठीक दो रोज़ बा'द इसी मस्जिद में जुमुआ की नमाज़ अदा की।
>>> आखिर में जब तुर्की की इस अज़ीम ख़िलाफ़त का अंत 19वी सदी में हुआ तब मुस्तफा कमाल पाशा जिस ने तुर्की के अज़ीम सुल्तान हमीद-२ का तख्ता पलट कर दिया उसी दौरान उस ने इस मस्जिद को एक म्यूज़ियम में तब्दील कर दिया।
>>> आज भी तुर्की के प्रेसिडेंट रजब तय्यब इदरगन साहब अपने बयानों में इस हागिया सोफिया का ज़िक्र करते रहते है और कहते है कि हम किसी भी हाल में इसे म्यूज़ियम तस्लीम नही कर सकते कि इस मस्जिद को म्यूज़ियम में तब्दील करना एक बहुत बड़ी गलती थी कि अब वक्त आगया है कि इसे अब दुबारा मस्जिद बना दिया जाए।
>>> अल्लाह तआला जल्द इस मस्जिद को दुबारा कायम फरमाए आमीन।
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