Friday, 28 February 2025

Shirk | shirk meaning |शिर्क किये कहते है?

शिर्क यानी अल्लाह तआ़ला कि ज़ात और शिफात में किसी शरीक को करना,यानी अल्लाह तआ़ला के बराबर किसी को मानना। 


 Surat No 26 : سورة الشعراء - 


Ayat No 69 

और इन्हें इबराहीम का क़िस्सा सुनाओ

 Ayat No 70 

जबकि उसने अपने बाप और अपनी क़ौम से पूछा था कि “ये क्या चीज़ें हैं जिनको तुम पूजते हो?”

 Ayat No 71 

उन्होंने जवाब दिया, “कुछ बुत (मूर्तियां) हैं जिनकी हम पूजा करते हैं और उन्हीं की सेवा में हम लगे रहते हैं।”

 72 

उसने पूछा, “क्या ये तुम्हारी सुनते हैं जब तुम इन्हें पुकारते हो?

 73

या ये तुम्हें कुछ फ़ायदा या नुक़सान पहुँचाते हैं?”

 74 

उन्होंने जवाब दिया, “नहीं, बल्कि हमने बाप-दादा को ऐसा ही करते पाया है।”

 75 

इस पर इबराहीम ने कहा, “कभी तुमने (आँखें खोलकर) उन चीज़ों को भी देखा जिनकी बन्दगी (इबादत, पूजा, अर्चना) 

 76 

तुम और तुम्हारे पिछले बाप-दादा करते रहे?

 77

मेरे तो ये सब दुश्मन हैं,  सिवाय एक रब्बुल-आलमीन  के,

78

जिसने मुझे पैदा किया,  फिर वही मेरी रहनुमाई (मार्गदर्शन) करता है।

 79 

जो मुझे खिलाता और पिलाता है

 80 

और जब बीमार हो जाता हूँ तो वही मुझे अच्छा करता है।

 81 

जो मुझे मौत देगा और फिर दुबारा मुझको ज़िन्दगी देगा।

 82 

और जिससे मैं उम्मीद रखता हूँ कि बदले के दिन में वो मेरी खता माफ़ कर देगा।”

 83 

(इसके बाद इबराहीम ने दुआ की), “ऐ मेरे रब, मुझे हुक्म अता कर।  और मुझको नेक लोगों के साथ मिला।

84 

और बाद के आनेवालों में मुझको सच्ची नामवरी दे।

 85 

और मुझे नेमत भरी जन्नत के वारिसों में शामिल कर।

 86 

और मेरे बाप को माफ़ कर दे कि बेशक वो गुमराह लोगों में से है

 87 

और मुझे उस दिन (हिसाब किताब के दिन) रुसवा न कर जबकि सब लोग ज़िन्दा करके उठाए जाएँगे

 88

जबकि न माल कोई फ़ायदा देगा न औलाद,

 89 

सिवाय इसके कि कोई शख़्स भला-चंगा दिल लिये हुए अल्लाह के सामने हाज़िर हो।”

 90

(उस दिन ) जन्नत परहेज़गारों के क़रीब ले आई जाएगी।

 91 

और जहन्नम बहके हुए लोगों के सामने खोल दी जाएगी

 92 

और उनसे पूछा जाएगा कि “अब कहाँ हैं वे (झूठे खुदा) जिनकी तुम अल्लाह को छोड़कर इबादत किया करते थे?

93

क्या वे तुम्हारी कुछ मदद कर रहे हैं या ख़ुद अपना बचाव कर सकते हैं?”

 94 

फिर वे माबूद (झूठे मनगढ़ंत खुदा) और ये बहके हुए लोग,

95 

और इबलीस (शैतान) के लश्कर सब के सब उसमें ऊपर तले धकेल दिए जाएँगे।

 96 

वहाँ ये सब आपस में झगड़ेंगे और ये बहके हुए लोग (अपने माबूदों से) कहेंगे कि

 97 

“ख़ुदा की क़सम, हम तो खुली गुमराही में मुब्तला थे

 98 

जबकि तुमको रब्बुल-आलमीन की बराबरी का दर्जा दे रहे थे।

 99 

और वे मुजरिम लोग ही थे जिन्होंने हमको इस गुमराही में डाला।

 100 

अब न हमारा कोई सिफ़ारिशी है

101 

और न कोई जिगरी दोस्त।

 102

काश, हमें एक बार फिर पलटने का मौक़ा मिल जाए तो हम मोमिन (ईमानवाले) हों।”

 103 

यक़ीनन इसमें एक बड़ी निशानी है,  मगर इनमें से ज़्यादातर लोग ईमान लानेवाले नहीं।

104 

और हक़ीक़त ये है कि तेरा रब ज़बरदस्त भी है और रहम करनेवाला भी।



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