असहाबे कहफ़ से मुहब्बत रखने की बिना पर ये कुत्ता भी जन्नत में जाएगा।
*हिन्दी/hinglish*
हदीसे पाक में आता है कि असहाबे कहफ़ से मुहब्बत रखने की बिना पर ये कुत्ता भी जन्नत में जाएगा, कैसे जायेगा उसको जानने के लिए ये रिवायत पढ़िए
असहाबे कहफ़ का कुत्ता - हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के ज़माने में एक नेक शख्स था जिसका नाम बलअम बिन बावर था, ये बहुत बड़ा ज़ाहिद आलिम सूफ़ी और मुस्तजाबुद दावात था यानि इसकी हर दुआ क़ुबूल होती थी, ये ज़मीन पर बैठे बैठे अर्शे आज़म देख लेता था इसके 12000 तलबा थे इस्मे आज़म जानता था गर्ज़ कि इंतेहाई उरूज पर था, जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम बनी इस्राईल को लेकर शहर कुनआन में दाखिल हुए तो कुनानी भागते हुए बलअम बिन बावर के पास पहुंचे और कहा कि वो हमारी हुक़ूमत पर क़ाबिज़ होना चाहते हैं, लिहाज़ा तुम उनके लिये बद्दुआ करो पहले तो इसने काफी मना किया मगर बाद में कसीर माल की लालच में आकर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के लिए बद्दुआ करने को तैयार हो गया, जब इसने बद्दुआ करनी शुरू की तो जो कुछ हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के लिए कहना चाहता क़ुदरते खुदावन्दी से खुद उसका नाम निकलता आखिरकार उसकी ज़बान सीने पर आ पड़ी और वो कुत्ते की तरह हांपने लगा, इस्मे आज़म भूल गया और सबने देखा कि उसके सीने से एक सफ़ेद कबूतर की मानिंद कुछ चीज़ निकलकर उड़ गयी तो लोगों ने जान लिया कि इसका ईमान सल्ब हो गया और वो इसी तरह ज़िल्लत की ज़िंदगी गुज़ारते हुए मरा, असहाबे कहफ़ का जो कुत्ता जन्नत में जाएगा वो बलअम बिन बावर की शक्ल में जन्नत में जाएगा और बलअम बिन बावर उस कुत्ते की शक्ल में जहन्नम में जाएगा
अल्लाहु अकबर,अल्लाहु अकबर, अल्लाह के वलियों से मुहब्बत रखने पर अगर कुत्ता जैसा नापाक जानवर जन्नत में जा सकता है तो खुदा की कसम अगर हम अशरफुल मखलूक़ात होकर उसके वलियों से मुहब्बत रखें तो कौनसी चीज़ हमें जन्नत में जाने से रोक सकती है, लिहाज़ा हम अगर रब के दोस्तों से मुहब्बत रखें और उसके दुश्मनों से अदावत तो इन शा अल्लाह हमारा बेड़ा पार होगा
तो अब बात समझ में आ गयी होगी तो चलिए आगे बढ़ते हैं, असहाबे कहफ़ भर चलते रहे और सुबह को शहर रक़ीम के क़रीब 1 ग़ार में दाखिल हुए और सो गए, जब ये ग़ार में दाखिल हुए तो किसी तरह बादशाह को पता चल गया तो उसने ये हुक्म दिया कि ग़ार के बाहर एक दीवार खींच दी जाए जिससे कि वो अन्दर ही मर जाएं और उसने जिस आदमी को ये काम सौंपा वो एक नेक शख्स था, उसने दीवार तो खींच दी मगर तांबे की तख्ती पर उनके नाम उनकी तादाद और उनका पूरा हाल लिखकर एक तख्ती ग़ार में टांग दी और एक ख़ज़ाने में भी छिपा दी, अल्लाह ने उनपर ऐसी नींद मुसल्लत कर दी कि ये तक़रीबन 300 साल तक उसी ग़ार में सोते रहे, ये 249 ईसवी में सोये और 549 ईसवी में जागे, हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की विलादत बा सआदत 570 ईसवी में है, मलतब इनके जागने का वाक़या हुज़ूर की विलादत से 21 साल पहले पेश आया, वक़्त गुज़रता गया बादशाह दक़्यानूस मर खप गया और फिर एक नेक बादशाह बैदरूस गद्दी पर बैठा, उस वक़्त उम्मत में ये गुमराहियत फैली हुई थी कि कोई भी मरने के बाद दुबारा जिंदा होने पर ईमान न रखता था, वो नेक बादशाह बहुत परेशान था, उसी ज़माने में एक चरवाहे ने उसी ग़ार को अपनी बकरियों के आराम के लिए चुना और दीवार गिरा दी मगर उसकी हैबत से वहां से भाग गया, आखिर कार असहाबे कहफ़ की नींद टूटी और सब के सब उठे तो वो शाम का वक़्त था, उन्होंने समझा कि हम सुबह को सोये हैं और शाम को उठे हैं, सलाम कलाम व इबादते इलाही के बाद इनको भूख लगी तो इनमें से एक हज़रात खाना लेने के लिए बाज़ार की तरफ गए तो देखते क्या हैं कि हर कोई हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की कसम खाता फिरता है ये सोचने लगे कि कल तक तो यहां कोई हज़रत का नाम भी ना ले सकता था फिर आखिर एक दिन में ऐसा क्या हो गया, फिर इन्होंने खाने का सामान खरीदा और अपने वक़्त का रुपया दिया जिसे देखकर दुकानदारों ने समझा कि शायद इन्हें कहीं से खज़ाना मिल गया है और सिपाहियों को खबर कर दी, आखिर कार इन्हे बादशाह के सामने ले जाया गया तो इन्होंने सारी हक़ीक़त बयान कर दी और कहा कि मेरे कुछ साथी भी हैं जो फिलहाल ग़ार में हैं, अब तो बादशाह अपने साथ एक कसीर जमात लेकर उनकी ग़ार की तरफ़ चल पड़ा, उनके साथ पूरे शहर का हुजूम भी था, जब ये बादशाह को लेकर अंदर दाखिल हुए तो वो सब कसरत से आदमी को देखकर डरे मगर जब इन्होंने पूरी हक़ीक़त बयान की तो सबकी जान में जान आयी, सब आपस में मिलकर बेहद खुश हुए और बादशाह को वहां वो तख्ती भी मिली जिसे पढ़कर कोई शक़ बाक़ी ना रहा, बादशाह ने हम्दे इलाही किया और लोगों से ख़िताब किया कि क्या अब भी तुम लोगों को अल्लाह की क़ुदरत यानि मौत के बाद ज़िंदा होने पर शक है, तो सब के सब मौत के बाद ज़िंदा होने पर ईमान लाये, असहाबे कहफ़ ने बादशाह से कहा कि अब हमें परेशान न किया जाए हम फिर वहीं जाते हैं और ये कहकर वो फिर से उसी ग़ार में दाखिल हो गए और सो गए, और आज तक सो ही रहें हैं रिवायत में आता है कि ये सभी हज़रात मुहर्रम की दसवीं को करवट बदलते हैं, और क़यामत के क़रीब हज़रत इमाम मेंहदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के दौर में उठेंगे और आप के साथ मिलकर दुश्मनो से जिहाद करेंगे, बादशाह बैदरूस ने उनकी ग़ार पर एक मस्जिद तामीर करवाई जिसका ज़िक्र क़ुर्आन में मौजूद है
कंज़ुल ईमान- तो बोले उनकी ग़ार पर इमारत बनाओ उनका रब उन्हें खूब जानता है वह बोले जो इस काम मे ग़ालिब रहे थे कसम है कि हम तो उन पर मस्जिद बनायेंगे
जब तक बादशाह ज़िन्दा रहा हर साल उनकी ग़ार पर खुद भी हाज़िरी देने आता था और तमाम लोगों को भी हुक्म करता था
*असहाबे कहफ़ के नामों की बरक़त* - हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने 15 फ़वायद बयान किये हैं
1. घर के दरवाज़े पर लिख कर टांग दें तो मकान जलने से महफ़ूज़ रहे
2. माल में रख दें तो चोरी ना हो
3. कशती में रख दें तो गर्क़ ना हो
4. भागा हुआ शख्स वापस आ जाये
5. आग में लिखकर डाल दें तो आग बुझ जाये
6. जो बच्चा ज़्यादा रोता हो उसकी तक़िया के नीचे रखें तो चुप हो जाये
7. अगर बारी का बुखार आता हो तो बाज़ू पर बांधे बुखार जाता रहे
8. दर्दे सर
9. उम्मुस सुब्यान
10. खुश्की व तरी में जान माल की हिफ़ाज़त
11. अक़्ल की तेज़ी के लिये
12. खेती की हिफ़ाज़त के लिये खेत के बीच में लगायें
13. अगर किसी सख्त अफ़सर के सामने जाना हो तो दाई रान पर बांध कर जायें,नर्मी बरतेगा
14. क़ैदी की रिहाई के लिये मुफ़ीद है
15. बच्चे की विलादत में आसानी के लिये औरत की बाई रान पर बांधे, विलादत में आसानी हो
📕 पारा 15,सूरह कहफ,आयत 21
📕 तफसीर खज़ाईनुल इर्फान,सफह 354
📕 हाशिया 14,जलालैन,सफह 243
📕 तफसीर हक़्क़ानी,पारा 15,सफह 71
*ⓩ अस्हाबे कहफ़ का अब तक ज़िंदा होना हर साल उनका करवट बदलना उनकी ग़ार पर मस्जिद तअमीर करना हर साल उनके मज़ार पर हाज़िरी देना और हज़रत इमाम मेंहदी के दौर में उठना ये सब उनके विलायत की दलील है और उनकी करामात में शुमार, वलियों की करामात के हक़ होने की दलील में आपने क़ुर्आन मुक़द्दस की कुछ आयतें पढ़ीं मअलूम हुआ कि जो लोग करामत के मुनकिर हैं वो सिर्फ वलियों की शान के ही मुनकिर नहीं बल्कि वो क़ुर्आन के भी मुनकिर हैं ऐसों को अपने अक़ीदे की इस्लाह करनी चाहिए*
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*To Be Continued*
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*ⓩ Hadise paak me aata hai ki Ashaabe kahaf se muhabbat rakhne ki bina par ye kutta jannat me jayega, kaise jayega usko jaanne ke liye ye riwayat padhiye*
*ASHAABE KAHAF KA KUTTA* - Hazrat moosa alaihissalam ke zamane me ek nek shakhs tha jiska naam balam bin baawar tha,ye bahut bada zaahid aalim soofi aur mustajabud daawaat tha yaani iski har dua qubool hoti thi,ye zameen par baithe baithe arshe aazam dekh leta tha iske 12000 talba the isme aazam jaanta tha garz ki intihayi urooj par tha,jab Hazrat moosa alaihissalam bani israyeel ko lekar shahre kunaan me daakhil hue to kunaani bhaagte hue balam bin baawar ke paas pahunche aur kaha ki wo hamari huqumat par qaabiz hona chahte hain lihaza tum unke liye baddua karo pahle to isne kaafi mana kiya magar baad me kaseer maal ki laalach me aakar Hazrat moosa alaihissalam ke liye baddua karne ko tayyar ho gaya,jab isne baddua karni shuru ki to jo kuchh Hazrat moosa alaihissalam ke liye kahna chahta qudrate khuda wandi se khud uska naam nikalta aakhirkaar uski zabaan seene par aa padi aur wo kutte ki tarah haampne laga isme aazam bhool gaya aur sabne dekha ki uske seene se ek safed kabootar ki maanind kuchh cheez nikalkar udd gayi to logon ne jaan liya ki iska imaan salb ho gaya,aur wo isi tarah zillat ki zindagi guzaarte hue mara,ashaabe kahaf ka jo kutta jannat me jaayega wo balam bin baawar ki shakl me jannat me jaayega aur balam bin baawar us kutte ki shakl me jahannam me jayega
*ⓩ ALLAHU AKBAR,ALLAHU AKBAR,ALLAH ke waliyon se muhabbat rakhne par agar kutta jaisa naapak jaanwar jannat me ja sakta hai to khuda ki kasam agar hum Ashraful makhluqaat hokar uske waliyon se muhabbat rakhen to kaunsi cheez hamein jannat me jaane se rok sakti hai,lihaza hum agar RUB ke doston se muhabbat rakhen aur uske dushmano se adawat to in sha ALLAH hamara beda paar hoga*
* To ab baat samajh me aa gayi hogi to chaliye aage badhte hain,Ashaabe kahaf raat bhar chalte rahe aur subah ko shahar raqeem ke qareeb ek gaar me daakhil hue aur so gaye,jab ye gaar me daakhil hue to kisi tarah baadshah ko pata chal gaya aur usne gaar ke darwaze par ek deewar uthwa di taaki ye log andar hi mar jaayein magar baadshah ne jis shakhs ko ye kaam saunpa tha wo neik aadmi tha,usne deewar to utha di magar ek taambe ki takhti par unke naam unki taadad aur unka poora haal likhkar wahin gaar me rakh diya,ALLAH ne unpar aisi neend musallat ki ye log takriban 300 saal tak usi gaar me sote rahe ye 249 hijri me soye aur 549 hijri me jaage,Huzoor sallallahu taala alaihi wasallam ki wiladat ba sa'adat 570 hijri me hai yaani inke jaagne ka waqiya aapki wiladat se 21 saal pahle pesh aaya,khair waqt guzarta gaya aur baadshah dakyanoos mar khap gaya aur phir ek neik baadshah baidroos gaddi par baitha,magar us waqt us ummat me ye gumrahi phaili huyi thi ki log marne ke baad uthne par imaan nahin la rahe the,wo neik baadshah bahut pareshan rahta tha,aakhir ek din ek charwahe ne apni bakriyon ke aaram ke liye us gaar ko chuna aur uski deewar gira di,deewar girne ki wajah se Ashaabe kahaf ki aankh khul gayi ye dekhkar wo charwaha to bhaag gaya,jab ye log soye the to subah ka waqt tha aur jab uthe to shaam dhal rahi thi inhone socha ki wahi din hai,salaam kalaam aur ibaadate ilaahi ke baad inhein bhook lagi to inme se ek hazraat khaana lene ke liye baazar ki taraf gaye,baazar me dekhte kya hai ki har koi hazrat Eesa alaihissalam ki kasam khaata phir raha hai ye sochne lage ki kal tak to koi hazrat ka naam bhi nahin le sakta tha phir ek din me aisa kya ho gaya,jab inhone saaman waghairah le liya to apne waqt ka rupya dukaandar ko diya,300 saal purana sikka dekhkar dukan daaron ne socha ki shayad inhe kahin se khazana mil gaya hai aur sipahiyon ko khabar de di,bahut jaanch padtaal ke baad bhi jab sipahiyon ki kuchh samajh me na aaya to baadshah ko khabar di gayi aur inhein darbaar le jaaya gaya,Tab inhone saari haqiqat bayaan kar di aur bataya ki hamare kuchh saathi bhi hain jo phalan gaar me hain,baadshah jab unse mulaqaat ko chala to ek kaseer jamaat bhi saath ho li,gaar me wo takhti bhi mil gayi jisme poora waqiya darj tha baadshah ko use padhkar koi shaq baaqi na raha,sab log aapas me milkar bahut khush hue,phir baadshah ne hamde ilaahi ki aur khutba diya ki kya ab bhi tum logon ko ALLAH ki qudrat yaani maut ke baad zinda kiye jaane par shaq hai to sabne tauba ki aur imaan laaye,Ashaabe kahaf ne kaha ki hamein pareshan na kiya jaaye hum phir wahin jaate hain ye kahkar wo sab ke sab phir usi gaar me jaakr so gaye aur aaj tak so hi rahe hain,Riwayat me aata hai ki ye hazraat muharram ki daswi ko karwat badalte hain aur hazrat imaam menhdi raziyallahu taala anhu ke daur me phir baahar aayenge aur aapke saath milkar dushmano se jihaad karenge,Baadshah baidroos ne aapki gaar par masjid banayi jiska zikr quran me kuchh is tarah hai
*KANZUL IMAAN* - To bole unki gaar par imaarat banao unka rub unhe khoob jaanta hai wo bole jo is kaam me gaalib rahe the kasam hai ki hum to un par masjid banayege
*ⓩ Jab tak baadshah zinda raha khud har saal wahan jaata raha aur logon ko bhi wahan jaakar unse faiz lene ka hukm diya*
*Ashaabe Kahaf ke naamo ki barkat* - Hazrate Abbas raziyallahu taala anhu ne aapke naamo ke 15 faayde bayaan kiye hain jo hasbe zail hain
1. Ghar ke darwaze par likhkar taang dein to ghar jalne se mahfooz rahega
2. Maal me rakh dein to chori nahin hoga
3. Kashti me rakh dein to gark nahin hogi
4. Bhaaga hua shakhs waapas aa jayega
5. Aag me likhkar daal dein to aag bujh jaayegi
6. Jo bachcha zyada rota ho to uski taqiya ke neeche rakh den to chup ho jaaye
7. Agar baari ka bukhar aata ho to baazu par baandhe bukhar chala jayega
8. Darde sar me faayda dega
9. Ummus subiyan me kaargar
10. Khuski wa tari me jaan maal ki hifazat
11. Aql ki tezi ke liye khaane me istemal karen
12. Kheti ki hifazat ke liye khet ke beech me lagayein
13. Agar afsar sakht hai to daayin raan me baandhen narmi karega
14. Qaidi ki rihayi ke liye mufeed hai
15. Aurat ki baayi raan par baandhe bachche ki wiladat me aasani hogi
📕 Paara 15,surah kahaf,aayat 21
📕 Khazayinul irfan,safah 354
📕 Jalalain,hashia 14,safah,243
📕 Tafseer haqqani,paara 15,safah 71
*ⓩ Ashaabe kahaf ka ab tak zinda hona har saal unka karwat badalna unki gaar par masjid tameer karna har saal unke mazaar par haaziri dena aur hazrat imaam menhdi ke daur me uthna ye sab unke wilayat ki daleel hai aur unki karamaat me shumar, Waliyon ki karamaat ke haq hone ki daleel me aapne quran muqaddas ki kuchh aaytein padhin maloom hua ki jo log karamat ke munkir hain wo sirf waliyon ki shaan ke hi munkir nahin balki dar asal wo quran ke bhi munkir hain aiso ko apne aqeede ki islaah karni chahiye*
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*Don't Call Only WhatsApp 9559893468*
*NAUSHAD AHMAD "ZEB" RAZVI*
*ALLAHABAD*
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