Saturday, 30 April 2022

औरते मस्जिद में न जाये|औरतो का मस्जिद में जाना कैसा?

*जवाब:👉* अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलेयही व सल्लम ने फरमाया की अल्लाह कि बंदियों को मस्जिद से मत रोको। और सरकार सल्लल्लाहु अलेयही व सल्लम के ज़माने में ओर हज़रत अबु बकर रदियल्लाहू अन्ह के दौर में औरतें मस्जिद में जा कर नमाज़ अदा फरमाती थीं। आप सल्लल्लाहु अलेयही व सल्लम के पर्दा फरमाने के बाद *जब हालात बदल गए ओर सहाबा ने अपने ज़माने में ये देखा कि औरतें अब उन पाबन्दियों का ख्याल नही करती तो हज़रते उमरे फारूक रदियल्लाहू अन्ह ने औरतों को मस्जिद में आने से सख्ती से मना किया और तमाम सहाबा ए किराम ने इस बात से इत्तिफाक किया।* ओर इस कि वजह हज़रत आयशा सिद्दीका रदियल्लाहू तआला अन्हा ने खुद बयान फरमाया जैसा कि बुखारी शरीफ की हदीस है- यानी अगर रसूलूल्लाह सल्लल्लाहु अलेयही व सल्लम इन हरकतों को देखते जो आज कल की औरतों ने ईजाद कर ली हैं तो इनको मस्जिद में जाने से रोक देते ,जिस तरह बनी इस्राइल की औरतों को रोक दिया गया था। *(बुखारी शरीफ हदीस न. 896)* इस हदीस से ये साबित होता है कि औरातों का रसूले करीम सल्लल्लाहु अलेयही व सल्लम के ज़माने में जमाअतों में हाज़िर होना ,महज़ रुख़सते वाजिबात की बिना पर था, किसी ताकीद की बिना पर नही था, इस रुख़सते वाजिबात के बावजूद रसूले करीम सल्लल्लाहु अलेयही व सल्लम की तालीम ओर इरशाद उनके लिए यही था कि अपने घरों में नमाज़ पढ़ें और इसी की तरग़ीब देते थे और फ़ज़ीलत बयान फरमाते थे जैसा कि बहुत सारी अहादीस में आया है। हज़रते अब्दुल्ला बिन मसऊद रदियल्लाहू अन्ह से रिवायत है की रसूले करीम सल्लल्लाहु अलेयही व सल्लम ने इरशाद फरमाया की औरत की नमाज़ कोठरी में बेरुनी कमरा की नमाज़ से बेहतर है (कमरे के अन्दर कोठरी या छोटा कमरा) ओर कोठरी के अंदर की नमाज़ ,कोठरी की नमाज़ से बेहतर है।(कोठरी के अंदर कोठरी) *(अबु दाऊद शरीफ)* *इस लिए आज के पुरफितन दौर में जिस में फितना, फसाद ओर बे हयाई आम है,ओर औरतों में बन संवर कर बाहर निकलने का रिवाज है,औरतों को मस्जिद में आकर नमाज़ पढ़ने की हरगीज़ इजाज़त नही। चाहे वो पर्दे के साथ ही क्यों ना आये।* *हरगीज़ हरगीज़ उनके लिए मस्जिद के पहलू में कोई जगह ना बनाई जाए इसलिए कि अगर उस काम में भलाई होती तो सहाबा ए किराम ज़रूर कर लेते लेकिन उन्होंने फ़ितने का दरवाज़ा कयामत तक के लिए बन्द कर दिया। और हम को निजात हासिल करने के लिए उनकी पैरवी करना वाजिब है जैसा कि रसूले करीम सल्लल्लाहु अलेयही व सल्लम ने इरशाद फरमाया* *"हिदायत वाला रास्ता वो है जिस पर में हूँ ओर मेरे सहाबा।* *✍🏻अल मुजीब:- मुफ़्ती मुहम्मद सुहेल रज़ा मरकज़ी साहब* खादीमुत्तदरीस वल इफ्ता दारुल उलूम अहले सुन्नत गुलशने तैबा मंदसौर (एम पी)

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